Shivratri (महाशिवरात्रि) 18 व 19 फरवरी 2023 रविवार को मनाई जाएगी | शिवरात्रि रात में क्यों मनाई जाती है? महाशिवरात्रि का वैज्ञानिक महत्व व आध्यात्मिक महत्व क्या है? महाशिवरात्रि किस तिथि को मनाई जाती है | महाशिवरात्रि की क्या कथा हैं |
हिंदू पंचांग के अनुसार प्रत्येक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मासिक शिवरात्रि का व्रत और पूजा-साधना की जाती है ,परन्तु फाल्गुन माह की चतुर्दशी तिथि को महाशिवरात्रि के रूप में मनाई जाती है। इस
Shivratri 2023 आने वाली हैं, सभी शिव भक्त अभी से महाशिवरात्रि की तैयारी में जुट गये हैं | महा शिवरात्रि मनाने की क्या कहानी हैं, महा शिवरात्रि कब मनाई जाती हैं इसका क्या महत्व ये सब हम सभी इस आर्टिकल के माध्यम से जानेगे | आप सभी पाठको से अनुरोध है कि आर्टिकल को पूरा अवश्य पढ़े |
महाशिवरात्रि कब है ? When is Shivratri ?
महा शिवरात्रि मुहूर्त Maha Shivaratri Muhurta
Maha Shivaratri on Saturday, February 18, 2023
Nishita Kaal Puja Time – 12:09 AM to 12:59 AM, Feb 19
Duration – 00 Hours 50 Mins
On 19th Feb, Shivaratri Parana Time – 06:50 AM to 03:26 PM
महाशिवरात्रि क्यों मनाई जाती है ?
हिन्दू समुदाय के भक्तो द्वारा महाशिवरात्रि का त्यौहार बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है। महाशिवरात्रि माने जाने के पीछे बहुत से मत है। हिन्दू पुराणों और धर्म ग्रंथों में इनकी व्याख्या की गयी है। मन्यातायो के अनुसार Shivratri शिवरात्रि मात्र एक त्यौहार नहीं बल्कि यह ऐसा दिन है जब आपके मन मस्तिष्क में ऊर्जा का नया स्वरुप उत्त्पन्न होता है।
महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिवजी की पूजा -अर्चना की जाती है। भगवान शिव अपने भक्तों द्वारा की जाने वाली पूजा से अति प्रसन्न होते हैं और उनकी मनोकामना पूरी करते हैं।
शिव पुराण में और अन्य लेखों में शिवरात्रि (Shivratri) को मनाने का विशेष महत्व दिया गया है।
Shiv puraan के अनुसार इस दिन भगवान शिव ने सृष्टि को रक्षा हेतु हलहाल विष का पान किया था और पूरी सृष्टि की रक्षा इस विष से से की थी। भगवान् शंकर द्वारा इसी विष के मध्य में सुंदर नृत्य किया गया और सभी देवताओं ,दानवों और भक्तों ने शिव भगवान् के इस नृत्य को अधिक महत्त्व दिया। हर साल इसी दिन को भगवान् शिव की पूजा -अर्चना की जाती है। जिसे शिव रात्रि के नाम से जाना जाता है।
Shivratri मनाये जाने के पीछे की कथा
एक कथा के अनुसार महाशिवरात्रि (Shivratri) के दिन ही ज्योतिर्लिंग ( शिवलिंग ) विभिन्न स्थानों पर प्रकट हुए थे। ये शिवलिंग अलग अलग 64 स्थानों में स्वयं प्रकट हुए थे। इन 64 लिंगों में से 12 लिंगों की पहचान हुयी जिन्हें हम 12 ज्योतिर्लिंग के नाम से भी जानते हैं। Mahashivratri के दिन उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर में दीप प्रज्वलित किये जाते हैं और पूरी रात जागरण किया जाता है।
कई शिवभक्त इसी दिन को भगवान् शिव के विवाह का उत्साव मानते हैं। मानयता अनुसार महाशिवरात्रि के दिन ही भगवन शिव और माता पार्वती का विवाह संपन्न हुआ था। शिवरात्रि के दिन ही भगवान् शिव ने अपने वैराग्य रूप का त्याग किया और गृहस्थ जीवन को अपनाया था। ऐसा माना जाता है की शिवरात्रि के 15 दिन बाद होली का त्यौहार मनाये जाने के पीछे यह कारण है।
महाशिवरात्रि मानाने के पीछे वैज्ञानिक महत्व | Scientific importance of celebrating Shivratri
सनातन धर्म में हर पर्व और त्यौहार का एक अलग ही महत्त्व है। हर फेस्टिवल को मनाने के पीछे आध्यात्मिक महत्त्व के साथ ही वैज्ञानिक महत्व भी होता है। यदि हम महाशिवरात्रि मनाये जाने के पीछे के वैज्ञानिक महत्त्व को जाने तो ऐसा माना जाता है की इसी रात्रि को ग्रह का उत्तरी गोलार्द्ध इस तरह से अवस्थित होता है की मनुष्य ,जीव जंतु सभी के भीतर की ऊर्जा का विस्तार नेचुरल तरीके (प्राकृतिक रूप) से ऊपर की ओर अग्रसर होता है।
इस दिन जब मानव को आध्यात्मिक शक्ति और ऊर्जा पाने में प्राकृतिक (नेचुरल ) तरीके से सहायता मिलती है। महाशिवरात्रि मात्र केवल एक पर्व ही नहीं है यह विचार के विभिन्न स्रोतों को एक मानक पर लाकर उन्हें शून्य करने और प्रचंड ऊर्जा प्राप्त करने का दिन है। Shivratri की रात्रि के समय भगवान शिव की पूजा आराधना करते समय भक्त को सीधे बैठकर शिवजी का जप करना चाहिए है। जिससे व्यक्ति की रीड की हड्डी सीधी होती है और उसे मजबूती मिलती है भक्तजन को इस दिन एक आध्यामिक उर्जा की भी अनुभूति होती है।
महाशिवरात्रि का आध्यात्मिक महत्व
महाशिवरात्रि के दिन सभी शिव भक्त भगवान शिव की भक्ति में रम जाते हैं | सुबह से रात्रि तक भक्त गढ़ भगवान शिव की आराधना में लीन रहते हैं | भोले बाबा का दूध से अभिषेक करते हैं बेल पत्र, आक का फूल इत्यादि चढाते हैं | उनका ध्यान करते हैं | भक्तजन उस दिन उपवास रखते हैं | रात्री को जागरण भी करते हैं | भोले शंकर स्वयं ही सभी भक्तो के उर्जा के श्रोत हैं |
उनके निराकार से साकार रूप में अवतरण की रात्रि ही महाशिवरात्रि कहलाती है। वह हमें काम, क्रोध, लोभ, मोह, मत्सर आदि विकारों से मुक्त करके परम सुख शान्ति और ऐश्वर्य प्रदान करते हैं ।
अमावस्या से 4 दिन पहले बसंत ऋतु के फाल्गुनी मास की चतुर्दशी को महाशिवरात्रि का महापर्व मनाया जाता हैं |
शिव रात्रि से सम्बंधित अक्सर पूछे जाने वाले सवाल (FAQs)-
शिवरात्रि 2023 कब है ?
shivratri 2023 इस वर्ष 18 फरवरी 2023 शनिवार को पड़ रही है।
शिवरात्रि क्यों मनाई जाती है ?
प्रत्येक वर्ष बसंत ऋतु के फाल्गुनी मास की चतुर्दशी को शिवरात्रि मनाई जाती है। ऐसी मान्यता है कि इसी दिन भगवान शिव ने हलाहल विष से सभी देव दानवों और सृष्टि की रक्षा की थी। एक अन्य मान्यता के अनुसार इसी दिन भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ था।
महाशिवरात्रि सबसे पहले किसके द्वारा मनाई गयी ?
शिव गणों द्वारा भगवान् शंकर को प्रसन्न करने के लिए शिवरात्रि का पहला उत्सव् मनाया गया था। भगवान शिव अपने प्रति ऐसे त्योहार को देखकर अत्यधिक प्रसन्न होते हैं। जिससे व्यक्ति को आध्यात्मिक वैज्ञानिक लाभ प्राप्त होता है।
महाशिवरात्रि कब मनाई जाती है?
अमावस्या से 4 दिन पहले बसंत ऋतु के फाल्गुनी मास की चतुर्दशी को महाशिवरात्रि का महापर्व मनाया जाता हैं |
शिवरात्रि रात में क्यों मनाई जाती है?
शैव धर्म परंपरा की एक कथा के अनुसार, यह वह रात है जब भगवान शिव निर्माण, संरक्षण और विनाश का स्वर्गीय नृत्य करते हैं । भजनों का जाप, शिव शास्त्रों का पाठ और भक्तों का कोरस इस लौकिक नृत्य में शामिल होता है और हर जगह शिव की उपस्थिति को याद करता है।
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